बाल विकास एवं शिक्षाशास्त्र
— अधिगम/सीखना
Child Development and Pedagogy — Learning
Hello
Friends, कैसे हैं आप सब ? I Hope सभी की Study अच्छी चल रही होगी ☺
दोस्तो
आप में से कुछ साथियों ने मुझसे CTET और State TET
के लिए Child Development and Pedagogy (बाल
विकास एवं शिक्षाशास्त्र) के नोट्स की मांग की थी! तो
उसी को ध्यान में रखते हुये आज से हम अपनी बेबसाइट GK-MARKETs
पर Child Development and Pedagogy के One Liner
Question and Answer के Notes उपलब्ध
कराऐंगे , जो आपको सभी तरह के Teaching के Exam जैसे
CTET , UPTET , MPTET, Bihar TET, MP Samvida Teacher , HTET ,
REET आदि व अन्य सभी Exams जिनमें कि Child
Development and Pedagogy से सवाल पुछे जाते हैं उन सभी परीक्षाओं
के लिए यह बहुत हीं महत्वपूर्ण और उपयोगी साबित होगा।
दोस्तो आज
हम Child Development and Pedagogy (बाल विकास एवं
शिक्षाशास्त्र) की हमारी इस पोस्ट अन्तर्गत हम आपको अधिगम/सीखना
(Learning) से संबंधित Most
Important Question and Answer को बताऐंगे ! साथ ही नीचे दिए गए
Download Button के माध्यम से आप
इसका FREE PDF भी डाउऩलोड कर सकते हैं।
·
विकास की प्रक्रिया सम्बन्धित है – अधिगम से
एवं कौशल
अधिगम से
·
विकास की मन्द गति की स्थिति में अधिगम होता है – मन्द
·
अधिगम के लिए आवश्यक है – बालक की
मानसिक स्वस्थता
एवं शारीरिक
स्वस्थता
·
कौशलात्मक अधिगम के लिए प्रमुख आवश्यकता होती है – शारीरिक विकास
की
·
अस्थि विकलांग बालकों के समक्ष अधिगम प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है – शारीरिक विकास
के कारण
·
व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने तथा व्यक्तित्व गुणों के सीखने में आवश्यक होता है – शारीरिक, मानसिक
एवं सामाजिक
विकास
·
स्वस्थ शरीर में निहित है – स्वस्थ मन
·
गतिविधि आधारित अधिगम के लिए आवश्यक है – शारीरिक एवं
मानसिक विकास
·
विकलांग बालकों के समक्ष विद्यालय में समायोजन की समस्या का प्रमुख कारण होता है – शारीरिक विकास
·
शारीरिक विकास को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि – यह मानसिक
विकास में
योगदान देता
है। यह
अधिगम में
योगदान देता
है। यह
कौशलों के
सीखने में
योगदान देता
है।
·
मानसिक रूप से मन्द बालक का अधिगम स्तर कम होता है क्योंकि ये बालक – विषय-वस्तु
पर ध्यान
नहीं दे
पाते हैं।
इनका मानसिक
विकास पूर्ण
नहीं होता
है।
·
अवधान का सम्बन्ध होता है – मानसिक विकास
से
·
स्मृति विहीन बालक का अधिगम स्तर निम्न होता है, क्योंकि – उसका मानसिक
विकास नहीं
होता है।
·
एक बालक अपनी शैक्षिक समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ है तो माना जाएगा – मानसिक विकास
का अभाव
·
प्रभावी एवं उच्च अधिगम के लिए आवश्यक है – मानसिक विकास
·
अधिगम से सम्बन्धित मानसिक शक्तियां हैं – स्मृति, अवधान,
चिन्तन
·
कक्षा में अधिगम प्रक्रिया हेतु बालकों का समूह विभाजन किस आधार पर किया जाता है – मानसिक विकास
के आधार
पर
·
अधिगम प्रक्रिया में चिन्तन की प्रभावशीलता प्रदर्शित करती है – उच्च मानसिक
विकास को
·
अधिगम प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका होती है – मानसिक शक्तियों
की
·
किसी कार्य को सीखने में सफलता के लिए आवश्यक है – उचित शारीरिक
विकास, उचित
मानसिक विकास
·
उच्च मानसिक विकास के लिए आवश्यक है – उत्तम स्वास्थ्य
·
मानसिक विकास की मन्दता प्रभावित करती है – अधिगम को
·
प्रतिभाशाली बालकों का अधिगम स्तर उच्च पाया जाता है क्योंकि उनका मानसिक विकास होता है – उच्च
·
अरस्तू के अनुसार, शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना जाता है – मानसिक शक्तियों
का विकास
·
शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य का प्रभाव पड़ता है – शिक्षण अधिगम
दोनों पर
·
वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग प्रमुख रूप से अधिगम में उन छात्रों के लिए किया जा सकता है, जो छात्र होता है – प्रतिभाशाली, उच्च
मानसिक विकास
वाले
·
संवेगों का सम्बन्ध होता है – मूल प्रवृत्ति
से
·
अधिगम की प्रक्रिया के प्रभावी रूप से विकसित होने के लिए आवश्यक है – संवेगात्मक स्थिरता
·
भौतिक विकास एवं अधिगम के मूल में समावेश है – संवेगात्मक विकास
·
सृजन की क्रिया किस संवेग से बाधित होती है – घृणासे
·
व्यवहार के सीखने में योगदान होता है – संवेगों का
·
शैशवावस्था में प्रमुख रूप से विकसित होता है – प्रेम, भय,
क्रोध
·
व्यवहार में मर्यादा का समावेश पाया जाता है – संवेगात्मक स्थिरता
के कारण
एवं संवेगात्मक
अस्थिरता के
कारण
·
बालक शीघ्रता से निर्णय लेने की क्षमता सीखता है – किशोरावस्था में
·
व्यक्तित्व निर्माण एवं विकास की प्रक्रिया में योगदान होता है – संवेगों का
स्थायित्व
·
एक किशोर भूख लगने पर खाना बनाने का प्रयास करता है तथा खाना बनाना सीख जाता है। उसका यह प्रयास माना जाएगा – संवेग द्वारा
सीखना
·
एक बालक को धन की आवश्यकता होने पर पिता से धन मांगता है। इसके लिए उपेक्षा मिलने पर वह धन कमाने के लिए विभिन्न कौशलों को सीखने लगता है। इस कार्य में किस संवेग का योगदान होता है – आत्म अभिमान
का
·
एक बालक मर्यादित व्यवकार को सीखता है। इसके मूल में उद्देश्य निहित होता है – चारित्रिक, नैतिक,
सामाजिक विकास
का
·
मुनरो के अनुसार, चरित्र में समावेश होता है – स्थायित्व का
एवं सामाजिक
निर्णय लेने
का
·
चारित्रिक विकास के अन्तर्गतविकास सम्बन्धी क्रियाओं को बालक सीखता है – आत्म अनुशासन,
मर्यादित व्यवहार,
नैतिक व्यवहार
·
चरित्र को माना जाता है – सामाजिक धरोहर
·
चारित्रिक विकास सम्बन्धी क्रियाओं को बालक सीखता है – पूर्वजों से,
परिवार से,
शिक्षक एवं
विद्यालय से
·
एक बालक सत्य इसलिए बोलना सीखता है क्योंकि यह चरित्र का सर्वोत्तम गुण है उसकी यह सीखने की प्रक्रिया है – सकारात्मक
·
एक बालक चोरी करना छोड़कर सत्य का आचरण सीखता है तो उसको सीखने की प्रक्रिया के मूल में समाहित होता है – चारित्रिक विकास
की भावना
·
अच्छे चरित्र की ओर संकेत करता है – नैतिकता, मानवता,
कर्तव्यनिष्ठा
·
‘हम’ की भावना से सम्बन्धित क्रियाओं को बालक किस अवस्था में सीखता है – बाल्यावस्था में
·
बालक विद्यालय में शिक्षक के गुणों को ग्रहण करता है क्योंकि वह शिक्षक को स्वीकार करता है – चरित्रवान व्यक्ति
के रूप
में
·
नैतिक क्रियाओं को सीखने के समय बालक की आयु होती है – लगभग 4 वर्ष
·
बालक अपनी क्रियाओं को परिणाम के आधार पर सीखने का प्रयास किस अवस्था में करता है – 5 से 6 वर्ष
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